अपनी बातों को दूसरे के साथ एकदम सटीक तरीके से समझाने का माध्यम ही भाषा कहलाता है. हम कंप्यूटर से भी बात करते हैं मतलब हम कंप्यूटर को निर्देशित करते हैं और इस निर्देसन के लिए हम जिस भाषा का प्रयोग करते है वो कंप्यूटर भाषा के तौर पर जाना जाता हैं. कंप्यूटर केवल विद्युत धारा के चालू या बंद, ० या १ मे अंकित भाषा ही समझ सकता है इन्हें बिट Binary Digit कहा जाता है. अतः कंप्यूटर से यदि कोई कार्य समपन्न करना है तो इसी भाषा मे समादेश तथा सूचनाएं देनी होती है. शुरुआती दौर में कागज के कार्डों में छिद्र करके कंप्यूटरों को निर्देश दिए जाते थे.
कंप्यूटर भाषाओं के निम्न प्रकार होते हैं-
१. मशीनी भाषा (Machine Language, Low Level Language, LLL)
२. संयोजन भाषा (Assembly Language, Middle Level Language, MLL)
३. उच्च स्तरीय भाषा (High Level Language, HLL)
मशीनी भाषा – कंप्यूटरों के विकास के बाद उनसे संवाद स्थापना के लिए अनुदेश बाइनरी सिस्टम मे ही अंकित किये जाते थे. इससे मशीन से सीधे संपर्क होता हैं, इसलिए इसे मशीनी भाषा कहा जाता हैं. कंप्यूटर मूलतः केवल यही भाषा समझता है. आज भी कंप्यूटर से संपर्क करने लिए हम इसी भाषा का प्रयोग करते है मगर काम करने वालो को इसका आभास नहीं हो पाता है. उपयोगकर्ता तथा कंप्यूटर के बीच प्रयुक्त भाषाएँ तथा प्रोग्राम इस कार्य को संपन्न करते रहते है. उदाहरण –
अगर हम Keyboard से ‘A’ टाइप करते हैं तो कंप्यूटर पहले उसके लिए पूर्व से निर्धारित ASCII संख्या =65 पहचानती है और फिर उससे मशीनी भाषा मे बदलती है. A = 65 = 1000001 मे बदलती हैं तब हमें एक आकृति प्राप्त होती है जो A होती हैं. यह सारी प्रक्रिया एक सेकंड के १००००० हिस्से मे होती है इस कारण हमें पता नहीं चलता.
मशीनी भाषा की समस्याएं- ० और १ मे कंप्यूटर को बार बार समझाने की प्रक्रीया आसान नहीं होती. अगर हमें कोई जटिल गणनाओं की आवश्यकता हो तो लिखने मे समस्या आ जाएगी.
संयोजन भाषा – ० और १ मे कंप्यूटर को बार बार समझाने की प्रक्रीया आसान नहीं होती इससे भाड़ी तनाव की स्थिति उत्पन होती है. इस तनाव से मुक्ति के लिए विशेषज्ञओ ने सांकेतिक भाषाओं का अविष्कार किया. उन्होंने प्रत्येक प्रक्रीया के लिए एक सरल शब्द को चुन लिया. ये शब्द मशीनी भाषा के ही पर्याय मान लिये गए. इन शब्दों से निर्मित भाषाओं को संयोजन भाषा कहा जाता हैं. इन शब्दों को पुनः कंप्यूटर को मशीनी भाषा मे समझाने के लिये असेम्ब्लेर का उपयोग किया जाता है. उदाहरण –
अगर हमे शीर्षक प्रारम्भ करना है तो SOH कमांड का प्रयोग किया जाता. जब भी कंप्यूटर पर नया शीर्षक की आवश्यकता होती वहाँ इस कमांड के उपयोग से कंप्यूटर समझ जाता की उसे अब नया शीर्षक बनाने का काम करना हैं. मशीनी भाषा मे कंप्यूटर को यह बात बतलाने के लिये ०,१,०,१,१,० जैसा एक लंबा लाइन लिखना पड़ता था.
संयोजन भाषा की समस्याएं- एक बार लिखे गए प्रोग्राम को बदलने मे समस्या उत्पन्न होती थी. इस भाषा मे प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को उस मशीन की हार्डवेयर की भी जानकारी रखनी पड़ती थी जिसमे वो प्रोग्राम चलता.
उच्च स्तरीय भाषा – कंप्यूटर का व्यावसायिक उपयोग बढ़ाने के साथ एक नया समस्या सामने आया. हरेक व्यावसायिक कंप्यूटर उपयोगकर्ता को अपने व्यवसाय के अनुसार प्रोग्राम की आवश्यकता होने लगी. परन्तु कंप्यूटर कार्य प्रणाली को जानने वालों की संख्या बहुत ही सिमित थी. अचानक बड़ी संख्या मे विशेषज्ञ प्रोग्रामरों को तेयार करना संभव नहीं था. अतः विशेषज्ञ प्रोग्रामरो ने एक और भी आसान भाषा का विकास किया जिसे उच्च स्तरीय भाषा कहा गया. इस भाषा के अंतर्गत की-वर्ड का निर्माण किया गया. जो साधारण इंग्लिश शब्दों से मिलता था. इस कारण इसे आसानी से याद भी रखा जा सकता था. इसके उपयोग के लिये कंप्यूटर कार्य प्रणाली की जानकारी आवश्यक नहीं रह गया. उच्च स्तरीय भाषा को मशीनी भाषा मे कंप्यूटर को समझाने के लिये इंटर-प्रेटर की आवश्यकता होती है. C, C++, C#, FORTAN, PASCAL, ORACLE आदि इसके उदाहरण है.